Saturday, 29 July 2017

Chamba himachal pradesh

CHAMBA HIMACHAL PRADESH

चम्बा हिमाचल प्रदेश में स्थित है जो की रावी नदी के किनारे पर बसा है चम्बा में दो नदियाँ कल कल कर बहती हैं एक रावी और साहल नदी चम्बा वैसे भी फैमस रहा फिल्म जगत में भी कई फिल्मों में चम्बा को दर्शाया गया है । जैसे पर्वत के पीछे चम्बे दा गांव , जैसे चम्बा एक अचंभा है नये जमाने के रंग में रंग जाने के बाद भी यहां लोकरंग जीवंत रूप में नजर आता है । यहां के देवी देवता यहां की जीवन शैली में घुल मिल गए हैं प्राचीन मंदिरों और उत्सवों परम्पराओं  को सहेजने की कला वखूबी जानते हैं यहां के लोग सीधे साधे व् सुंदर होते हैं सीमा पर होने की बजह से  पंजाब और जम्मू की जनजातीय संस्कृति का प्रभाव भी दिखाई देता है । कहा जाता है कि जो एक बार यहां जाता है बो एक महीना यहां गुजार देना चाहता है बारिश के मौसम में यहां की संस्कृति उत्सव मेलों का लुफ्त भी उठा सकते है ।

खजियार यानि मिनी स्विट्ज़रलैंड की खूबसूरत पहाड़ियां चरों तरफ हरियाली ,नदियाँ और झीलें दुनिया भर में प्रसिद्ध हैं स्विट्ज़रलैंड के तत्कालीन राजदूत यहां की खूबसूरती से आकर्षित होकर 7 जुलाई 1992 को खजियार को हिमाचल प्रदेश का स्विट्ज़रलैंड का नाम दे गए थे । यहां का मौसम चीड़ और देवदार के वृक्ष , हरियाली  पहाड़ और वादियां स्विट्ज़रलैंड का एहसास करवाती हैं हजारों साल पुराने इस हिल स्टेशन को खासकर खज्जी नाग मंदिर के लिए जाना जाता है । यहां नाग देव की पूजा होती है । जन्नत माने जाने वाले खजियार का एक बड़ा आकर्षण  चीड़ व् देवदारों से  ढकी झील है । झील के चारों और हरी हरी मुलायम घास खूबसूरती में चार चांद लगा देती है झील के बीच में दो टापू नुमा स्थान है । खजियार में तरह तरह के खेलों का प्रयोजन भी किया जाता है । लेकिन गोल्फ के शौकीनों के लिए ये जगह अच्छी है ।

डलहौजी में टैगोर-नेताजी की यादेँ

अंग्रेजी शासन के समय 1857 में आस्तित्व में आया था चम्बा का यह शहरयह स्थल चम्बा से 192 किलोमीटर दूर है जो हिमाचल के फेमस पर्यटक स्थलों में एक है । जहाँ खूबसूरत कुदरती नाजरीन के बीच पर्यटन का आनंद उठाया जा सकता है । यहां प्राचीन मंदिरों औपनिवेशिक इमारतों , माल रोड , चर्च आदि में से कुछ यादगार  विरासतों में शुमार लिया गया है यह स्थान 5 पहाड़ियों पर वसा है । अंग्रेज अधिकारी लार्ड कर्जन ने स्थानीय राजा की मदद से इस ओरयत्न स्थल को विकसित किया था । लार्ड कर्जन खुद कभी डलहौजी नहीं आये । इसके साथ नेताजी सुभाष चंद्र बोस व् साहित्यकार रविन्द्र नाथ टैगोर जैसी महान हस्तियों का नाम भी जुड़ा है नेता जी एक बार बीमार पड़े थे तो उन्हीने स्वस्थ होने के लिए यहां 6 महीने बिताये थे वे जिस बावड़ी का पानी पीते थे उसका नाम भी सुभाष बावड़ी रखा गया है गांधी चौक में स्थित कोठी में अपने मित्र के पास ठहरते थे आज भी नेता जी से जुडी टेबल कुर्सी अन्य चींजे माजूद हैं कहते है कि रवीन्द्रनाथ टेगोर जी को अपनी सुप्रसिद्ध कृति गीतांजलि को लिखने की प्रेणना यहां ही मिली थी

PANGI AND CHURAH VALLEY

चम्बा में स्थित पांगी और चुराह वे स्थान हैं , जिन्हें कुदरत के हसींन नजारों के बीच पर्यटन और ट्रेकिंग के लिए विकसित किया जा रहा है । लोक संस्कृति और प्राचीन विधाओं और मान्यताओं से ओत प्रोत पांगी घाटी मध्य हिमालय में स्थित है इसकी ऊंचाई समु्द्र तल से 8 से 12 हजार फीट है । चुराह घाटी बागवानी के लिए मशहूर है । घाटी के लोग अधिकतर कृषि पर निर्भर रहते हैं यहां सेब की अच्छी पैदावार होती है । चुराह घाटी में  मौजूद सतरूँडी व् साच पास सैलानियों को बहुत पसंद है इसकी बजह से यहां पर भारी मात्रा में बर्फ का होना है वर्फ को देखने के लिए यहां देश विदेश से हजारों पर्यटक आते हैं समुद्र तल से 14500 किलोमीटर की ऊंचाई पर स्थित साच पास पांगी घाटी को चम्बा से जोड़ने के लिए  सबसे कम दूरी वाला मार्ग है इसलिए यहां आने जाने वाली गाड़ियों से यह घाटी हमेशा गुलज़ार रहती है चम्बा जाने के लिए निकट रेलवे स्टेशन पठानकोट है यहां सड़क मार्ग से चम्बा की दुरी 120 किलोमीटर है

Manimahesh yatra

जन्माष्टमी पर मणिमहेश यात्रा होती है । महादेव की तपस्थली मणिमहेश यात्रा का रोमांच भी लोगो को चम्बा की और खीँच लाता है । समुद्रतल से यह लगभग 13500 फ़ीट है दुर्गम और पथरीला रास्ता होने के बाबजूद भी लोग यहां चले आते हैं । हर साल श्री जन्माष्टमी से लेकर राधाष्ठमी तक चलने वाली इस यात्रा का अलग ही महत्व है । यहां कैलाश छोटी के ठीक नीचे से  मणिमहेश गंगा का उदभव है । कैलाश पर्वत की छोटी पर शिवलिंग के स्वरूप वाले चट्टान की इस यात्रा में पूजा की जाती है ।

Suhi mela

रानी सुनयना के नाम पर लगता है सूही मेला । रानी सुनयना वह देवी थी । जिसने प्रजा को पानी उपलब्ध कराने के लिए अपना बलिदान दे दिया था । कहा जाता है चम्बा नगर वसने के बाद यहाँ पानी की समस्या हुयी थी । कहा जाता है कि राजा को स्वपन हुआ था कि स्वपन में दैवीय आदेश मिला की राजपरिवार से बलि दी जाये तो कमी दूर हो सकती है रानी ने वलिदान देना स्वीकार कर लिया था । रानी के प्रति श्रद्धा का प्रतीक यह प्रचलित गीत है । ठंडा पानी किया करि पीना हो तेरे नैना हेरी हेरी जीना हो । वलिदान के समय देवी ने लाल वस्त्र पहने थे । लाल रंग को बहन की भाषा में सुहा रंग कहा जाता है । इस कारण रानी का नाम सुही पड़ गया था । उनके नाम पर हर वर्ष चैत्र माह मे सुहा मेले का आयोजन किया जाता है ।

Minjor mela

जुलाई के अंतिम सप्ताह में मिंजर का मेला मनाया जाता है । मिंजर का अर्थ है । मक्के तथा गेहूं से बनाई हुई बालियां । 17वी शताव्दी के मध्य चम्बा के राजा पृथ्वी राज की नूरपुर राज्य पर जीत के साथ परम्परा शुरू हुयी थी । इस उत्सव में मल्हार गीत गाया जाता है । यह आस्था के साथ सौहार्द की मिशाल है जब मुस्लिम परिवार भगबान रघुनाथ को मिंजर अर्पित करते हैं । तभी ये आयोजन आरम्भ होता है । राजा पृथ्वी राज ने कड़ाई के काम के लिए दिल्ली से मिर्जा परिवार के कुछ लोगो को चम्बा बुलाया था । जो कड़ाई के काम में निपुण थे तब से आज तक उनके वंश के लोग मिंजर बनाते हैं इस पीढ़ी में इसे खलीद और नदीम कहा जाता है ।

Luxmi narayan temple chamba

लक्ष्मीनारायण मंदिर यह शहर का सबसे भव्य मंदिर है मंदिर परिसर में श्री लक्ष्मी दामोदर मंदिर , महामृत्यंजय मंदिर , श्री लक्ष्मी नाथ मंदिर , श्री गुप्त महादेव मंदिर और राधा कृष्ण मंदिर है । इस मंदिर को साहिल वर्मन ने बनवाया था । राजा चतर सिंह ने 1678 मंदिर के दरवार में सोने का आवरण चढ़ाया था । कहा जाता है पहले यह मंदिर चम्बा के चौगान में था । बाद में इसे बर्तमान स्थल में स्थापित किया । मंदिर में लक्ष्मी नारायण  की वेखुंट मूर्ति कश्मीरी और गुप्तकालीन निर्माण का अनूठा प्रतीक है ।  इस मूर्ति के चार मुख और चार हाथ हैं । मूर्ति की पृष्ठभूमि में 10 अवतार चित्रित हैं ।

Dharmaraj temple in chamba

धर्मराज की कचहरी ।
चम्बा से करीब 60 किलोमीटर दूर स्थित भरमौर में 84 मंदिरों का समूह है । इसमें एक धर्मराज का मंदिर भी है । चम्बा रियासत के राजा मेरु वर्मन ने छटी शताब्दि में इस मंदिर की सीढ़ियों का जीर्णोद्धार कराया था । मान्यता है कि मरने के बाद हर व्यक्ति को इस मंदिर में जाना पड़ता है । मंदिर में एक खाली कमरा है जिसे चित्रगुप्त का कमरा माना जाता है । कहते हैं की मृत्यु के बाद धर्मराज के दूत उसकी आत्मा को चित्रगुप्त के सामने पेश करते हैं । इस कमरे को धर्मराज की कचहरी भी कहा जाता है । पुजारी बताते है कि सदियों पूर्व चौरासी मंदिर समुह में  दिन के समय भी कोई नहीं जाता था । अप्राकृतिक मृत्यु होने पर यहां पिंडदान किये जाते हैं ।

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